भारत में बेटियों के अधिकार को लेकर लंबे समय से एक महत्वपूर्ण बहस चलती आ रही है, खासकर पैतृक संपत्ति और कृषि भूमि के मामले में। पारंपरिक तौर पर, शादीशुदा बेटियों को अपने पिता की जमीन में बराबर का हिस्सा नहीं दिया जाता था, जबकि अविवाहित बेटियों को कुछ हद तक अधिकार मिलते थे। लेकिन अब इस भेदभाव को खत्म करने की दिशा में बड़ी पहल की जा रही है।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में लागू प्रदेश राज्य संहिता 2006 की धारा 108 के तहत, किसी पुरुष के मरने के बाद उसकी संपत्ति की हिस्सेदारी विधवा पत्नी, पुत्र और अविवाहित पुत्रियों को मिलती है, जबकि शादीशुदा बेटियों को यह अधिकार तब ही दिया जाता है जब कोई अन्य उत्तराधिकारी मौजूद न हो। यह नियम बेटियों के साथ स्पष्ट भेदभाव करता है और लैंगिक समानता के सिद्धांत के खिलाफ माना जाता है।
हाल ही में उत्तर प्रदेश की राजस्व परिषद ने इस नियम में बदलाव का प्रस्ताव रखा है, जिसमें “अविवाहित” शब्द को हटा कर सभी बेटियों को बराबर का अधिकार देने की बात कही गई है। अगर यह संशोधन लागू हो जाता है, तो शादीशुदा बेटियों को भी अपने पिता की कृषि भूमि में समान अधिकार मिलेंगे। मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में पहले से ही ऐसी व्यवस्था लागू है और वहां इससे कोई गंभीर समस्या नहीं आई है।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (संशोधित 2005) के अनुसार भी बेटियों को पैतृक संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलता है। लेकिन कृषि भूमि का मामला राज्य के अधिकार क्षेत्र में आने के कारण, कुछ राज्यों ने इस अधिकार को पूरी तरह मान्यता नहीं दी। सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है कि महिलाओं को उनके अधिकार से वंचित करना असंवैधानिक है।
अगर बेटियों को बराबर का अधिकार मिलता है, तो यह समाज में बड़ा बदलाव लेकर आएगा। इससे बेटियों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और वे परिवार और समाज में आत्मनिर्भर बनेंगी। ग्रामीण इलाकों में जहां कृषि ही मुख्य रोजगार है, वहां यह कदम महिलाओं के लिए नई उम्मीद लेकर आएगा।
हालांकि इस बदलाव का विरोध भी हो रहा है। कुछ लोग कहते हैं कि जमीन के बंटवारे से खेती करना मुश्किल हो जाएगा। लेकिन मध्य प्रदेश और राजस्थान के अनुभव इस बात को खारिज करते हैं। साथ ही, जब बेटे शहर या विदेश में बस जाते हैं, तब भी वे संपत्ति पर अधिकार रखते हैं, इसलिए शादी के आधार पर बेटियों से हक छीनना उचित नहीं।
संशोधन के सही क्रियान्वयन के लिए प्रशासनिक तैयारियां भी जरूरी हैं। राजस्व अधिकारियों को बेटियों के अधिकारों के प्रति जागरूक करना और भूमि रिकॉर्ड को नियमित अपडेट करना आवश्यक होगा ताकि विवादों से बचा जा सके।
यह बदलाव सिर्फ एक कानूनी पहल नहीं बल्कि सामाजिक सोच में भी सकारात्मक बदलाव की दिशा में कदम है। बेटियों को बराबरी का अधिकार मिलने से वे न केवल आर्थिक रूप से मजबूत होंगी, बल्कि समाज में उनके प्रति नजरिया भी बदलेगा।
अगर उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में यह बदलाव सफल होता है, तो यह पूरे देश में महिलाओं के अधिकारों के लिए एक मिसाल बनेगा। यह कदम भारत में लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय को और मजबूत करेगा, जिससे बेटियां अपने हक के साथ आत्मविश्वास और सम्मान से जीवन यापन कर सकेंगी।
नोट: यह लेख उपलब्ध मीडिया रिपोर्टों और कानूनी दस्तावेजों के आधार पर तैयार किया गया है। अंतिम कानूनी सलाह के लिए संबंधित विभाग या विशेषज्ञ से संपर्क करें।